मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा
सुप्रसिद्ध रंगकर्मी “वर्मा दंपति” बने देहदान के प्रणेता
वर्मा दंपति की यह पहल लोगों को देहदान के प्रति प्रेरित करेगी और मानवता को बढ़ावा देगी।
उग्र प्रभा समाचार, छिन्दवाड़ा/ आपने पुराणों में वर्णित महर्षि दधीचि की कथा तो अवश्य ही सुनी होगी,जिन्होंने अपनी अस्थियों का दान कर मानवता की रक्षा की थी।पुराणों में वर्णित यह कथा हमें यह सीख देती है कि असली मनुष्य वही है जो मृत्यु के बाद भी मानवता के काम आए।आज हम जिस दंपति की बात कर रहे हैं उन्हें हम आधुनिक दधीचि कहें तो अतिशयोक्ति न होगी।यह दंपति हैं हमारे शहर के जाने माने रंगकर्मी,श्री सचिन वर्मा और श्रीमती नीता वर्मा।पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट सचिन वर्मा देश के सुप्रसिद्ध रंगकर्मी और नाट्य निर्देशक हैं।पिछले 25 वर्षों से रंगमंच के लिए समर्पित सचिन वर्मा ने जिले की प्रसिध्द नाट्य संस्था नाट्यगंगा के जरिये रंगकर्म की अलख जगाई हुई है।जिले में नाटकों के पुनरुत्थान के वह सारथी कहे जाते हैं।वहीं श्रीमती नीता वर्मा सचिन वर्मा की पत्नी होने के अतिरिक्त भी अपनी स्वतंत्र पहचान रखती हैं।वह भी पिछले 16 वर्षों से रंगमंच में सक्रिय हैं।तथा राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय मंचों पर उंन्होने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरुस्कार हासिल किया है।वह नाटकों पर ही पी एच डी कर रहीं हैं तथा वर्तमान में गर्ल्स कॉलेज में जनभागीदारी व्याख्याता हैं।वहीं सचिन वर्मा टैक्स बार एसोसिएशन छिंदवाड़ा में सचिव के पद पर कार्यरत हैं।दोनों ही जिले की अन्य सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े हैं। जिले के इस सम्मानित दंपति नें छिंदवाड़ा मेडिकल कॉलेज में अपनी देहदान कर बहुत ही साहसिक और अनुकर्णीय कार्य किया है।देहदान एक ऐसी वसीयत है जिसके तहत मृत्यु के पश्चात दानकर्ता की मृत देह का अंतिम संस्कार न करवा कर मेडिकल कॉलेज में दान कर दिया जाता है।ताकि मेडिकल के छात्र उनके मृत शरीर से प्रेक्टिकल कर शरीर विज्ञान को समझ सकें।
जब इस दंपति से पूछा गया कि आपको देहदान की प्रेरणा कैसे मिली ? तो सचिन वर्मा ने बताया कि,हमारे देश की जनता मेडिकल कॉलेजों की माँग तो खूब करती है लेकिन देहदान के प्रति बहुत उदासीन है।शायद इसका कारण धार्मिक पूर्वाग्रह और जागरूकता की कमी है।जिसके चलते हमारे देश के मेडिकल कॉलेजों में कैडेवर का हमेंशा अभाव रहता है। कैडेबर डिसेक्शन रूम में एक टेबल पर रखे उस मृत शरीर को कहते है जिसे छूकर, उसका चीर फाड़ करके मेडिकल के स्टूडेंट शरीर के आंतरिक अंगों का अध्यन करते हैं।देखा जाय तो यह मृत शरीर ही इन भावी डॉक्टरों का प्रथम गुरु होता है।इसलिए मेडिकल कॉलेज के इन स्टूडेंट्स के लिए यह मृत शरीर बहुत जरूरी होता है।पर दुर्भाग्य से तमाम मेडिकल कॉलेजों में इसका बहुत अभाव है।अतः देहदान के प्रति जागरूकता बहुत ज्वलंत विषय है।
श्रीमती नीता वर्मा से जब यह पूछा गया कि हमारे धर्म में तो अंतिम संस्कार पर बहुत जोर दिया जाता है तो क्या यह हमारी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ नहीं होगा ? तो उन्होंने कहा कि जो लोग पुराणों में वर्णित कर्मकांडों का हवाला देकर अपने परिजनों को देहदान करने से रोकते हैं वह भूल जाते हैं कि महर्षि दधीचि की कथा भी हमारे पुराणों में ही वर्णित है।मर कर भी मानवता के काम आना ही सच्चा मोक्ष है।
निःसन्देह वर्मा दंपति की यह पहल लोगों को देहदान के प्रति प्रेरित करेगी और मानवता को बढ़ावा देगी।