संवाददाता - मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा
"काव्य सौंदर्य अभिप्रेरण सृजन वृक्ष की जड़ें सींचता है": प्रो. अमर सिंह
"वर्षा के गीत सजे वर्षा के गीत, बगिया बहारों से नाचे मन मीत ,सजे वर्षा के गीत '' रामलाल सराठे "रश्मि'
"अलग खड़ा है अलगू चौधरी, जुम्मन बगलें झाकें": ओमप्रकाश नयन
"कुछ भी तेरे पास नहीं है,
मुठ्ठी भर विश्वास नहीं है": रतनाकर रतन
"सभी शौक जीवन के हो जाएं पूरे,
खुद उतरेगा चोला, पुराना बहुत है": राजेंद्र यादव
उग्र प्रभा समाचार छिंदवाड़ा: आंचलिक साहित्यकार परिषद की खजरी रोड एकलव्य कॉलोनी छिंदवाड़ा में पं.शंकरलाल शर्मा के मुख्य आतिथ्य में आयोजित काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ कवि नंद कुमार दीक्षित ने सरस्वती वंदना का आवाहन यों किया "टूट जाएं भव बंधन सारे, ऐसी बुद्धि प्रखर दे,अध:पतन हो सके कभी ना, ऐसा उच्च शिखर दे"। छिंदवाड़ा के वरिष्ठ साहित्यकार अतिथि कवि रतनाकर रतन ने आपसी अविश्वास पर करारा प्रहार "कुछ भी तेरे पास नहीं है, मुठ्ठी भर विश्वास नहीं है" कहकर किया। काव्य गोष्ठी अध्यक्ष प्रो अमर सिंह ने कहा कि काव्य सौंदर्य अभिप्रेरण सृजन वृक्ष की जड़ें सींचता है। किसी भी व्यक्ति का संसार उसकी अभिव्यक्ति के अनुपात में विस्तारित होता है और सिकुड़ता भी है। काव्य सृजन की संवेदनशील कवयित्री श्रीमती सविता श्रीवास्तव ने मानवीय महत्वकांक्षाओं के उथलेपन पर अपना कटाक्ष "सपनों के तट हैं जितने सुनहरे, सच के हैं किनारे उतने ही गहरे" के उद्बोधन से सभी श्रोताओं का मनमुदित कर दिया। युवा कवि प्रत्यूष जैन ने "बातों को टालना होगा, लहजा संभालना होगा, कशमकश है कहां जाएं, एक सिक्का उछालना होगा" सदृश अपने उद्गारों से अति गंभीर होने के खतरों से आगाह किया। युवा कवि राजेंद्र यादव ने बेहतरीन मंच संचालन करते हुए कहा "सभी शौक जीवन केहो जाएं पूरे, खुद उतरेगा चोला, पुराना बहुत है, सभी को गदगद कर दिया।मार्मिक कवि अशोक जैन ने "चला जाता है अक्सर छोड़कर वो, मगर लौटकर आता तो है" कहकर नाउम्मीदी से बचने की सलाह दी। प्रसिद्ध कवि ओमप्रकाश नयन ने "संघर्ष किया है किसने कितना, अन्तर्मन की परखी में वो खुद ही झांके, अलग खड़ा है अलगू चौधरी, जुम्मन बगलें झाकें" कहकर व्यवस्था और सोच की खामी उजागर की।सपनों के तट हैं जितने सुनहरे,
सच के किनारे हैं उतने ही गहरे":
🖊️सविता श्रीवास्तव
नैनों से अपने मत तू नीर बहने दे,
नैनों में अपने बस तू नूर रहने दे "
🖊️मोहिता मुकेश *कमलेंदु*
दमक- दमक देखो दामिनी दमक रही
नभ बीच गरजत मेघ घनघोर है।
🖊️श्रीमती अनुराधा तिवारी
झगड़े की वजह मां भी होती है,
इसे तू रखेगा या मैं रखूं ।
🖊️श्रीमती प्रीति शक्रवार जैन
काव्य गोष्ठी की प्रमुख आयोजिका कवयित्री श्रीमती शरद मिश्रा ने "हमको राहें दिखाकर कहां चल दिए, हमसे दामन छुड़ाकर कहां चल दिए" पढ़कर वतन पर तन न्योंछावर करने वाले शहीदों को अपने अनूठे अंदाज में श्रद्धांजलि दी। प्रकृति के सजीव कवि रामलाल सराठे ने पावस ऋतु चित्रण कुछ इस अंदाज में किया "वर्षा के गीत सजे वर्षा के गीत, बगिया बहारों से नाचे मन मीत"। घनाक्षरी की लावण्यता की कवयित्री श्रीमती अनुराधा तिवारी ने वर्षा ऋतु पर, व्यंग्य के कवि अंकुर बाल्मीकि ने "कलम की कोख में सागर की गहराई है", मशहूर नाट्यकर्मी विजयानंद दुबे ने वंदे मातरम पर कविता से, अनिल आसोलकर ने आध्यात्मिक रिक्तता, निर्मल प्रसाद विश्वकर्मा ने अपने भजन से और रूबल मिश्रा ने प्रेरक प्रसंगों से खुद की खोज करने को काव्य का विषय बनाने पर अपनी कविताएं पढ़ीं। काव्य गोष्ठी में अनु शर्मा, दीप्ति पाठक, सुनीता शुक्ला, कविता माहोरे, मुकेश मिश्रा, संजय शर्मा और विशम्भर नाथ शुक्ला की गरिमामई उपस्थिति रही।