सम्राट हिरदेशाह जी के बलिदान दिवस पर उनके श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन करते हुए याद किया गया
किन्तु बहुत खेद का विषय है कि अंग्रेजों के विरुद्ध सन् 1842 में स्वतन्त्रता की पहली मिशाल जलाने वाले ऐसे पवित्र व उदात्त राष्ट्र-भाव के पुरोधा के महान बलिदान तक को हमारे देश की घोर पक्षपातपूर्ण ऐतिहासिक क़लम ने किंचित भी स्थान नहीं दिया
हमारे देश के घृणित वर्ण-व्यवस्था के कुलीन व जातीय श्रेष्ठ वर्ग की कुटिल दृष्टि से राष्ट्र-भावना की यह उपेक्षा हमें बार-बार सोचने को विवश करती है
*निष्पक्ष, निर्मल, निश्छल और निस्पृह भावना के इतिहासकार इस सत्य के साथ भी न्याय करें। मैं ऐसी अपेक्षा करता हूँ। एडवोकेट देवेंद्र वर्मा छिंदवाड़ा प्रदेश मंत्री अखिल भारतीय लोधी लोधा लोध राजपूत क्षत्रिय महासभा मध्यप्रदेश*
राजा हिरदेशाह लोधी के बलिदान दिवस पर विशेष - संकलनकर्ता(एडवोकेट देवेंद्र वर्मा)
1842 की बुंदेला क्रांति के महानायक राजा हिरदेशाह लोधी 1842 की क्रांति के अगवा हीरापुर के राजा हिरदेशाह लोधी ने नरसिंहपुर स्थित हीरागढ़ रियासत से संपूर्ण सागर व नर्मदा टेरिटरीज के अंतर्गत जिला सागर दमोह जबलपुर नरसिंहपुर हर्रई जिला छिंदवाड़ा के सभी बुंदेला गोंड, राजगौड़ व लोधी राजाओं को संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध 1842 में बुंदेला विद्रोह का सफल नेतृत्व किया इस संघर्ष में हीरागढ़ रियासत के परिवारजन गजराज सिंह सावंत सिंह लटकन जू मेहरबान सिंह व ईसरी सिंह ने अंग्रेजों से हर मोर्चे पर 18 माह तक जमकर संघर्ष किया उस समय हीरागढ़ रियासत के राजा के पास 1843 हल्का 24,500 सैनिक 80 बड़ी तोपें 100 छोटी तोपें 200 गुराब 07 हाथी 1600 घोड़े 500 सांड़ियां और 200 खच्चर थे अंग्रेजों ने लंबा संघर्ष देखकर राजा हिरदेशाह पर 10,000 रुपये का इनाम रखा था अंततः धोखे से सागर स्थित शाहगढ़ के राजा बखतबली ने परिवार सहित राजा हिरदेशाह को 23 दिसंबर 1842 को गिरफ्तार करवा दिया भीषण संघर्ष के बाद अंततः ब्रिटिश सरकार को भी झुकना पड़ा और मजबूरी बस नरसिंहपुर के लगान में 10% की छूट देनी पड़ी तथा 1843 में पुनः नरसिंहपुर को जिला बनाने हेतु अंग्रेजी हुकूमत को मजबूर होना पड़ा हीरापुर के इस राजघराने के लोगों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा करने 1857 की क्रांति में भी जिले का नेतृत्व किया भाई गजराज सिंह अपने मुल्क की खातिर लगातार संघर्ष करते रहे अंततः अंग्रेजों ने उन्हें जबलपुर के चंडाल भाटा में 29 नवंबर 1857 को फांसी दे दी जिनके 50 किलो वजन का बखतर 25 किलो का टोप 25 किलो का गुटन्ना आज भी नागपुर के म्यूजियम में सुरक्षित है 1857 की क्रांति में पुनः नरसिंहपुर जिले का नेतृत्व राजा हिरदे शाह के पुत्र मेहरबान शाह ने किया उस समय की विश्व शक्ति अंग्रेजों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी पर वह इस वीर क्रांतिकारी मेहरबान सिंह को अंत तक गिरफ्तार नहीं कर पाए वृद्ध राजा हिरदेशाह ने अंग्रेजों की शर्त मानने से इनकार कर दिया था इस कारण 3 अप्रैल 1857 को हीरागढ़ रियासत की पूरी संपत्ति अंग्रेजों ने राजसात कर ली अंततः महान क्रांतिकारी राजा हिरदेशाह लोधी 18 अप्रैल 1858 को हम सब को छोड़कर इस दुनिया से चले गए, सम्राट हिरदेशाह लोधी सभी के दिलों में बसे हैं जिस कारण मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते विपिन डेविड विधायक एटा राष्ट्रीय अध्यक्ष लोधी समाज पूर्व केंद्रीय मंत्री व वर्तमान पंचायत ग्रामीण विकास श्रम मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल और वन मंत्री एवं नरसिंहपुर के पूर्व प्रभारी मंत्री कुंवर विजय शाह जी व लोधी समाज के अध्यक्ष जालम सिंह पटेल प्रदेश मंत्री एडवोकेट देवेंद्र वर्मा विजय पढेरिया चौधरी जोगेंद्र सिंह की विशिष्ट आतिथ्य में 28 अप्रैल 2022 को राजा हिरदेशाह के नाम से नर्मदा सेतु ग्राम केरपानी नरसिंहपुर मध्यप्रदेश में मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू पटेल जी के मुख्य आतिथ्य में कार्यक्रम संपन्न किया गया जिसमें लोधी समाज के तमाम पदाधिकारी सहित अन्य नरसिंहपुर के जनप्रतिनिधि एवं पत्रकार बंधु शामिल हुए व अष्टधातु 11 फुट की प्रतिमा का अनावरण इनकी गरिमामयी उपस्थिति में किया गया 28 अप्रेल को बलिदान दिवस मनाया जाता है!