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आंचलिक साहित्यकार परिषद की मासिक काव्य गोष्ठी संपन्न

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संवाददाता - मोहिता जगदेव 

उग्र प्रभा समाचार , छिंदवाड़ा

" कविता बेजुबानों को जुबान देने का कवि का धर्म है": प्रो. अमर सिंह 

"उसको क्या फर्क जीत हार से, मां तो उलझ सकती है पर्वत दिगार से " राकेश राज 

"न जाने जिक्र ये किसका हुआ है, अभी तक मेरा घर महका हुआ है ": कवि चंदन अयोधि 


 उग्र प्रभा समाचार ,छिंदवाड़ा: आंचलिक साहित्यकार परिषद छिंदवाड़ा की मासिक गोष्ठी संस्था के सचिव रामलाल सराठे के निज निवास परासिया रोड रघुवरपुरम में आयोजित हुई। गोष्ठी में मुख्य अतिथि बतौर वरिष्ठ कवि रतनाकर रतन नियति से सामंजस्य बैठाने पर कविता पढ़ी, "काल के गाल में समाते रहिए,आस्था का कोई पल नहीं होता"। वरिष्ठ कवि नंद कुमार दीक्षित एकला चलो दर्शन को यों उकेरा "शूलों से भरा पथ है, अंधकार गहरा है, कोई नहीं है साथी, एकांत पथ है मेरा"। संस्था के अध्यक्ष पूर्व  आकाशवाणी उद्घोषक अवधेश तिवारी ने बसंत ऋतु के भोर की निराली आभा को बुंदेली में यों पढ़ा," भुंसारो भओ चमक उठो पूरब को कोना कोना, टप टप टपक रहो पिघल पिघल खे सोना"।गोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. अमर सिंह ने कविता को वृद्धाश्रम में अपने बच्चों द्वारा धकेले बूढ़ों की कारूणिक वेदना का इजहार कहकर बेजुबान वंचितों की पीड़ा का इजहार बताया। कवि चंदन अयोधि ने रूमानी अंदाज में अपनी पेशकश यों की "न जाने जिक्र ये किसका हुआ है,अभी तक घर मेरा महका हुआ है"। श्रीमती दीपशिखा ने नारी की छिपी शक्ति को अपने शब्दों में यों पढ़ा "चमकती चांदनी इश्क की रानाई है औरत, वतन पर आंच आई तो लक्ष्मीबाई है औरत। युवा तरुणाई के कवि राकेश राज ने दिखाबे के दान पर यों प्रहार किया "अगर पड़ोसी भूखा बैठा हो तो, मंदिर मंदिर दान चढ़ाना बेमतलब"। स्वप्निल जैन ने मंच संचालन के साथ अपनी कविता "ये तो हम थे कि अपने आप को रोने नहीं दिया" श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सुनाकर डॉ.आर.गजभिए ने अपने अंदाज को यों बयान किया "अश्कों से भरी आंखें हाथों से छुपाओगे, किस तरह छुपाओगे ये दामन जो गीला है"। युवा कवि अमित सोनी ने अपनी कविता यों पढ़ी "कोई आया है, दस्तक दे रहा है, कोई चांद है या कोई जलजला है। 

वतन पर आंच आई तो लक्ष्मीबाई है औरत" कवि दीपशिखा

स्वच्छंद चंचला बनो और उड़ो आसमां में तुम, अब वक्त नहीं बंधन स्वीकार करने का": मोहिता मुकेश कमलेंदु

युवा कवयित्री श्रीमती शैफाली शर्मा ने मनुष्यता निर्माण पर अपनी कविता पढ़ी "अपने पुरजोर अस्तित्व को बचाते हुए एक रहने की आखिरी व पुरजोर कोशिश है, अन्यथा मनुष्य होने पर प्रश्न है"। श्रीमती मोहिता मुकेश कमलेंदु ने स्त्री स्वातंत्र्य पर अपनी कविता "स्वच्छंद चंचला बनो और उड़ो आसमां में तुम, अब वक्त नहीं बंधन स्वीकार करने का" पढ़कर सबको आनंदित कर दिया। श्रीमती पद्मा जैन ने अपनी कविता पढ़ी" गलती पर गलती करे उसे शैतान कहते हैं, गलती कर जो न सुधरे, उसे हैवान कहते हैं"। अंबिका शर्मा ने अपनी कविता पढ़ी" प्रतीक्षा हो अहिल्या सी, लगन शबरी के जैसी हो, समर्पण हो जटायु सा, भाव केवट जैसा हो"। 

इसके अलावा नेमीचंद व्योम, रामलाल सराठे, स्वप्निल जैन, संजय वर्मा,  निर्मल प्रसाद उसरेठे, अंकुर बाल्मिकी, शशांक दुबे, अमित सोनी, हैदर अली खान,  विकल जौहरपुरी, राजेंद्र यादव, कविता भार्गव, प्रत्यूष जैन, अनिल ताम्रकार व नंदकिशोर नदीम ने अपनी काव्य लहरी को सुनाकर सबके हृदयों को रोमांचित कर दिया। आभार प्रदर्शन संस्था के सचिव रामलाल सराठे ने किया।

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